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उ॒त त्या तु॒र्वशा॒यदू॑ अस्ना॒तारा॒ शची॒पतिः॑। इन्द्रो॑ वि॒द्वाँ अ॑पारयत् ॥१७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tyā turvaśāyadū asnātārā śacīpatiḥ | indro vidvām̐ apārayat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। त्या। तु॒र्वशा॒यदू॒ इति॑। अ॒स्ना॒तारा॑। शची॒३॒॑ऽपतिः॑। इन्द्रः॑। वि॒द्वान्। अ॒पा॒र॒य॒त् ॥१७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:17 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:17


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शचीपतिः) प्रजा वा वाणी का पति (विद्वान्) विद्वान् (इन्द्रः) और राजा जिन (तुर्वशायदू) शीघ्र वश करने और यत्न करनेवाले मनुष्य (उत) और (अस्नातारा) स्नान आदि कर्म्मों से रहित मनुष्यों को (अपारयत्) दुःख से पार उतारे (त्या) वे दोनों सुखी होवें ॥१७॥
भावार्थभाषाः - जिन मनुष्यों को यथार्थवक्ता विद्वान् लोग शिक्षा देवें, वे दुःख के पार जाकर सुखी होते हैं ॥१७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

शचीपतिर्विद्वानिन्द्रो यौ तुर्वशायदू उताप्यस्नातारापारयत् त्या सुखिनौ स्याताम् ॥१७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (त्या) तौ (तुर्वशायदू) शीघ्रं वशंकरो यत्नवाँश्च तौ मनुष्यौ। तुर्वशा इति मनुष्यनामसु पठितम्। (निघं०२.३) यदव इति च। (अस्नातारा) स्नानादिकर्मरहितौ (शचीपतिः) प्रजापतिर्वाक्पतिर्वा (इन्द्रः) राजा (विद्वान्) (अपारयत्) दुःखात् पारयेत् ॥१७॥
भावार्थभाषाः - यान् मनुष्यानाप्ता विद्वांसः सुशिक्षेरंस्ते दुःखान्तं गत्वा सुखिनो भवन्ति ॥१७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या माणसांना आप्त विद्वान लोक शिक्षण देतात त्यांचे दुःख नाहीसे होऊन ते सुखी होतात. ॥ १७ ॥